Add To collaction

व्यथित मन लेखनी प्रतियोगिता -10-Dec-2023


             व्यथित मन

        सरला का आज अंग-अंग बहत दुख रहा था। वह अपने वदन को हिला डुला भी नहीं पारही थी। सरला का पति संतोष हर शाम को ठेके से शराब पीकर आता और सरला को पीटने का बहाना खोजता । आज तो कुछ ज्यादा ही हद  होगई  थी।

          सरली का उठने का न तो मन था, न ही हिम्मत। मगर उठना मजबूरी थी। रोज़ 6 बजे तक उठ जाया करती थी लेकिन उस दिन 7 बज गए। बीती रात बहुत भारी कटी थी बेचारी की। पति ने आज  फिर तबीयत से पिटाई की थी दारु के नशे में। अब तो लगभग रोज़ का ही हो चला था यह सब। मगर उस रात कुछ ज्यादा ही हो गया था। बेचारी उठी, बगल में 3 साल की बच्ची सो रही थी, उसे यूं ही छोड़, लड़खड़ाती, बदन को सहलाती नल पर गई, मुँह धोया और रोज़ की तरह दैनिक कार्यों में जुट गई।

  सरला को शादी से पहले का वह  मनहूस   दिन याद आगया। जिस दिन सरला के पापा खुश होकर आये और बोले," शान्ति मैं आज सरला का  रिश्ता तय कर आया हूँ । सब बातें तय होगई  है अब केवल सगुन करना बचा है"

     " आप घर में बिना बताए  अचानक  कहाँ रिश्ता कर आये। सरला को तो पूछ लेते? इतनी क्या जल्दी थी ?  अभी वह अठारह  की भी नहीं हुई  है।" शान्ती देवी ने पूछा।

       शान्ती मैं भी सरला का बाप हूँ? मैं उसका भला ही सोचूँगा ? लड़का सरकारी नौकर है। वह नगर पालिका में क्लर्क  है। पक्का घर है । अकेला लड़का है। अपनी सरला मौज करेगी।"  मोहन खुश होता हुआ बोला।

          यह तो सब जानते हैं कि यदि नौकरी सरकारी हो तो रिश्तों की क्या कमी। लाईन लग गई थी रिश्ता जोड़नेवालों की। मगर किस्मत उस बेचारी की ही फूटी थी जो उस निकम्मे से रिश्ता जुड़ा। पिताजी से कईं बार कहा कि लड़का पसंद नहीं, शक्ल से ही बदमाश लगता है पर उनके अपने ही तर्क थे। सूरत में क्या रखा है ? इंसान की सीरत देखनी चाहिये। सीरत के नाम पर जो दिखाई दे सकनेवाली चीज़ थी वह शायद सरकारी नौकरी थी जिसने चरित्र, ऐब, शौक इत्यादि सभी चीज़ों के बारे में जानने की संभावनाओं को ही समाप्त कर दिया था। मोहन  का तो मानना था कि किस्मत अच्छी है जो उन जैसी लोअर मिडिल क्लास फैमिली को यह रिश्ता मिल गया। बाप के पास पैसा न हो तो बेटी की सुंदरता और किस्मत, ये दो ही चीज़ें विवाह नामक महाआयोजन की वैतरणी को पार लगाती हैं। तो इस केस में भी यही हुआ था। हालांकि फिर भी वर पक्ष जितना झटक सकता था, उससे ज्यादा ही वसूल गया था लड़कीवालों से लड़के की सरकारी नौकरी के नाम पर।

         मोहन ने भी तो अपनी  सारी जमापूंजी और  कर्ज उठाकर लड़की विदा की थी, सो यही प्रैशर काफी था ससुराल में सबकुछ सहकर टिकने का। कभी-कभी सरला ने  संकेत भी दिया था अपने साथ होनेवाले जुल्मों का, मगर यही सुनने को मिला कि लड़की को ही एडजस्ट करना होगा। थोड़ा-बहुत  तो औरत की जिन्दगी में यह सब होता ही है।

    सरला को  अब यह सबसहन करने की आदत होगई  थी क्यौकि सरला को यह  ब्यथा  एक दिन में प्राप्त नहीं हो गई थी। हुआ तो सब धीरे-धीरे था पर यह धीरे-धीरे भी इतनी तेजी से हुआ कि संभलने का मौका ही न मिला। अभी हनीमून पीरियड पूरी तरह शुरु भी नहीं हुआ था कि पता चला एक नए जीव ने संसार में आने के लिए दस्तक दे दी है। उसके बाद तो दिन कहाँ हवा हुए, पता भी न चला कि उसकी शादी के बाद जीवन के  तीन साल गुजर गए। संतोष के पीने की आदत में वक्त के साथ-साथ बढ़ोत्तरी होती चली गई और पीने के बाद मर्दानगी दिखाने के लिए औरत पर हाथ उठाने का उसका हौंसला बढ़ता ही चला गया।

           यह संसार का नियम है कि जब इंसान को कुछ चीज़ें आसानी से मिल जाएँ तो उनकी कद्र समाप्त हो जाती है। एक दो बार आफिस  से कोई  पूछने आया सरला तब मालूम हुआ  कि पति महाशय  बिना बताए ऑफिस से भी अक्सर अनुपस्थित हो जाते हैं । खैर सरला  को पति के ऑफिस में उसका कोई लेना देना नहीं थी। बल्कि वह तो चाहती थी कि वह बंदा ऑफिस से घर ही न आए।

       सरला का मन जब बहुत  ब्यथित होजाता तब  उसका खुद का मन जरुर करता था नौकरी करने का। ग्रैजुएशन तो उसने भी किया था लेकिन इससे पहले कि कुछ और करने के बारे में सोच पाती, शादी नाम की बेड़ियाँ हाथ-पैरों में पहना दी गईं थी सरकारी नौकरीवाले दामाद के साथ।  वह कुछ  करने की सोचपाती उससे पहले ही एक बच्ची की माँ बन गई  थी।

    सरला के दिन ऐसे ही गुजर रहे थे पिटते-पिटाते।  खुशियां तो बहुत  दूर चलीं गई  थीं।लाइफ में जो थोड़ी-बहुत खुशी थी वह उस नन्ही परी की बदौलत थी, जिसकी मासूमियत के सहारे पूरा दिन कट जाता था।

      सरला अपनी तकदीर  मानकर यह सब सहती जा रही थी। कभी-कभार  उसका ब्यथित मन आत्महत्या करने की सोचता। परन्तु अपनी परी को देखकर  सब भूल जाती थी वह सोचती मेरे बाद  इस मासूम का क्या होगा?

               समय बीतता जारहा था ।फिर एक दिन वह आया जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। रात के दस बज चुके थे। पति महोदय अभी तक घर नहीं लौटे  थे। वैसे तो  उनका हर रोज देर से आने की आदत बन चुकी थी।

       सरला सोने की कोशिश  कर रही थी उसी समय डोर बैल बजने की आवाज  सुनकर  वह डरी, सहमी और पिटने के लिए मानसिक रूप से तैयार होकर गेट को खोलने के लिये भारी कदमों से चल दी। दरवाजा खोला तो सामने पुलिस का एक सिपाही खड़ा था।

दरवाजा खुलते ही सिपाही ने  उसे आधार  कार्ड  दिखाते हुए  पूछा, “आप  इनको जानती हैं ?“

          “जी यह  मेरे पति हैं यह कहाँ है?  यह ठीक तो है? " घबराकर  सरला ने पूछा।

     "आप मेरे साथ शीघ्र अस्पताल चलो ?" सिपाही बोला।

“क्यों ? क्या हुआ ? मेरे पति कहाँ हैं ?”

“वो हॉस्पिटल में हैं उनकी बाइक का एक्सीडेंट हो गया है।“

     सरला अपनी बेटी के साथ अस्पताल  पहुँची। वहाँ जाकर पता चला कि हॉस्पिटल में पति नहीं सिर्फ उसकी बॉडी पड़ी  थी।  बहुत कठिनाई  से स्वयं को सम्भाला। पति का अन्तिम संस्कार  करवाया।

          इसी बीच किसी रिश्तेदार ने सलाह दी कि पति के मरने के बाद पत्नी को उसकी जगह सरकारी नौकरी मिल जाती है। ऑफिस जाकर पता किया तो बात सच निकली। फॉर्म भरा गया और कुछ दिनों की कागजी औपचारिकताओं के बाद वह दिन भी आ गया जब अपॉइंटमैंट लैटर उसे मिल गया। अब सरला के ब्यथित मन को कुछ शान्ति  मिली।


       सरला के  नौकरी, मिलने के बाद   वे सारे घाव भर दिये थे जो उस मृत पति ने अपने जीते जी लगाये थे। जो न तो उस नौकरी के लायक था और न ही उस परिवार के जिसके लिए नौकरी की जाती है। अब वह  खुशी-खुशी ऑफिस जाती थी । आज सरला को  अपने पापा के वह शब्द  समझ में आरहे थे कि दामाद तो सरकारी नौकरीवाला ही होना चाहिए।

   अब सरला के जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ थी। बेटी भी अच्छे स्कूल  में पढा़ई  कर रही थी।पति के जाने से उसके मन में कोई  दुःख नहीं था।

आज की दैनिक कहानी   प्रतियोगिता हेतु।
नरेश  शर्मा " पचौरी "

   21
3 Comments

Gunjan Kamal

14-Dec-2023 11:05 PM

👏👌

Reply

Milind salve

14-Dec-2023 07:00 PM

Nice

Reply

Varsha_Upadhyay

14-Dec-2023 06:16 PM

शानदार

Reply